Mangal Dosh

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क्या है मांगलिक दोष : ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को सभी ग्रहों का सेनापति कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी की जन्म कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति अच्छी हो तो वह व्यक्ति को पराक्रम, शौर्य, साहस, हिम्मत, ऊर्जा तथा भूमि प्रदान करता है। जन्म कुंडली में मंगल की स्थिति अच्छी न होने पर व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 
मंगल के कमजोर होने की स्थिति में व्यक्ति के जीवन में दुर्घटना की संभावना, जमीन जायदाद से संबंधित झगड़ा, कोर्ट कचहरी, कर्ज, विवाह में परेशानी या वैवाहिक जीवन में परेशानी का सामना करना पड़ता है।

वास्तव में मंगल दोष क्या है? किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति किस प्रकार की होने से मंगल दोष होता है? मंगल दोष का निवारण किस प्रकार करना चाहिए? इन सब बातों के बारे में हम अपने इस लेख में जानेंगे।

मांगलिक योग कुंडली का मिलान 

जब वर या कन्या की कुंडली में मंगल लग्न, लग्न से चतुर्थ, लग्न से सप्तम, लग्न से अष्टम या लग्न से द्वादश भाव में हो तो मांगलिक दोष कहलाता है। इसके अतरिक्त यदि मंगल चंद्र राशि मे , चंद्र से चतुर्थ, चंद्र से सप्तम, चंद्र से अष्टम या चंद्र से द्वादश भाव में हो तो चंद्र मांगलिक दोष कहलाता है।


लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे। स्त्री भर्तुर्विनाशच भर्त्ता च स्त्री विनाशनम् ।।


इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत में मांगलिक दोष का विचार शुक्र से तथा द्वितीय भाव के मंगल होने से भी व्यक्ति को मांगलिक माना जाता है।

मंगल ग्रह भी विवाह से पहले वर और कन्या की जन्म कुंडली के मिलन के समय अत्यंत आवश्यक है। एक व्यक्ति की कुंडली में मंगल दूसरे को कष्ट पहुंचा सकता है। अतः मांगलिक मिलान भी आवश्यक होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि कन्या या वर में से कोई भी मांगलिक व्यक्ति हो, तो उसके लिए उसका जीवन साथी भी मांगलिक ही होना चाहिए।

कई ज्योतिषी मानते है कि लड़के की कुंडली में बारहवें भाव में मंगल स्थित है तो लड़की की कुंडली में भी बारहवें भाव में ही मंगल स्थित होना चाहिए तभी ये उचित मिलान कहा जाएगा। नहीं तो उन दोनों वर तथा कन्या का विवाह करना उचित नहीं होगा। परंतु अधिकाशतः ज्योतिषी ऐसा विचार नहीं मानते।

यदि कोई व्यक्ति मांगलिक है और उसकी कुंडली में जिस भाव में मंगल स्थित है ठीक उसी भाव में उसके साथी की कुंडली में कोई पाप ग्रह जैसे राहु, शनि, केतु अथवा सूर्य स्थित है तब भी विवाह किया जा सकता है क्योंकि पाप ग्रह से मंगल की ऊर्जा कम हो जाती है।

सूर्य को पाप ग्रह नहीं कहा जाता लेकिन इसे उग्र ग्रह की श्रेणी में रखा जाता। है। उदाहरण के लिए यदि  लड़की की कुंडली में सातवें भाव में मंगल स्थित है और लड़के की कुंडली के उसी सातवें भाव में कोई पाप ग्रह (शनि, राहु केतु अथवा उग्र ग्रह सूर्य) स्थित है तब विवाह किया जा सकता है। 
 

आंशिक मांगलिक दोष क्या है। 
 

मांगलिक मिलान में आजकल एक और शब्द भी विशेष रूप से सुनने में आ रहा है  - आंशिक मांगलिक।
यह शब्द ज्योतिष के ग्रंथों में तो नहीं है लेकिन यह बखूबी ऐसी कुंडलियों को दर्शाता है जो मांगलिक तो हैं लेकिन किसी न किसी कारण से मांगलिक दोष का परिहार  हो रहा हो, जैसे मंगल उच्च या स्वगृही हो या गुरु से दृष्ट हो आदि। 

आंशिक मांगलिक का विवाह मांगलिक से तो कर ही सकते हैं क्योंकि वह भी मांगलिक तो है ही, लेकिन उसका सादा कुंडली से भी मिलान सही मान सकते हैं क्योंकि उसमें मांगलिक दोष का निवारण हो रहा है। ज्योतिषानुसार भी यह सही है क्योंकि मंगल दोष के अनेकों परिहार हैं एवं मांगलिक दोष केवल कुछ विशेष कुंडलियों में ही अनिष्टकारी होता है।

मंगल दोष के लक्षण

मांगलिक जातकों के विवाह के समय कई प्रकार के विघ्न आते हैं।

जातक का विवाह संबंध आसानी से तय नहीं हो पाता या फिर विवाह संबंध तय होकर छूट जाता है।

अधिक उम्र गुजरने पर भी विवाह नहीं हो पाता।

विवाह पश्चात् जीवन साथी से प्रायः विवाद के कारण पति-पत्नी के संबंधों में कटुता की स्थिति बनी रहती है।

लग्न भाव में मंगल
लग्न में बैठा मंगल अपनी स्थिति द्वारा जातक के शरीर में एवं सप्तम भाव को दृष्टि द्वारा प्रभावित करके, मंगल, जातक के वैवाहिक जीवन में अतिरिक्त उत्तेजना एव क्रूरता भर देता है और जातक को अतिभोगी बनाता है। यदि जातक के जीवनसाथी में उसके इन गुणों या अवगुणों को सहने की क्षमता नहीं होती है तो उसके वैवाहिक जीवन में विष घुल जाता है। 

लग्न मे मांगलिक दोष का प्रभाव 

  1. वैवाहिक जीवन में आवेश और क्रोधवश गलत निर्णय लिए जाते हैं, जिसके कारण जातक की सामाजिक छवि और प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
  2. जातक का सुख मैं कमी आती है और आयु भी घटती है।
  3. मंगल की यह स्थिति उसकी पत्नी के लिए मारक का काम भी करती है। 
  4. पति-पत्नी में अलगाव होने की संभावनाए प्रबल होती है।
  5. प्रथम भाव में यदि मंगल हो एवं अशुभ ग्रहों (शनि, राहु क्षीण चंद्रमा) के साथ हो व शत्रु राशि में हो तो मंगल दोष होता है। ऐसी स्थिति से पत्नी का स्वास्थ्य व आयु प्रभावित होता है, जातक का विवाह अधिक उम्र में होता है तथा विवाह में विलंब की स्थिति उत्पन्न होती है।

चतुर्थ भाव में मंगल

जन्मपत्रिका का चतुर्थ भाव जातक के सुख का भाव है और मंगल यहां दिशाबल से हीन होता है। यहां से मंगल सप्तम, दशम और एकादश भाव को प्रभावित करता है अर्थात इन भावों में अतिरिक्त ऊर्जा को  प्रभावित करता है। दशम भाव, अष्टम अर्थात  तीसरे भाव से अष्टम भाव भी है जो जातक की आयु का सूक्ष्म भाव है और सप्तम से चतुर्थ भाव अर्थात भार्या के सुख का भाव होता है। दूसरे शब्दों में चतुर्थस्थ मंगल इस स्थिति में जातक के विवाह एवं वैवाहिक जीवन, उसके सुख को और आयु को प्रभावित करता है।

चतुर्थ  मे मांगलिक दोष का प्रभाव

  • चतुर्थ भाव में यदि अशुभ मंगल हो तो ऐसे जातक का विवाह शीघ्र होता है परंतु विवाह पश्चात वैवाहिक जीवन में सुख का अभाव हो जाता है। 
  • घर गृहस्थी में क्लेश की संभावना प्रबल होती है। 
  • घर के बड़े बुजुर्ग से अनबन होना तथा भूमि भवन से संबंधित मामलों में उलझनें पैदा होने लगती है।

सप्तम भाव में मंगल
यह स्थिति अधिक प्रबल होती है जो जातक के जीवन में सप्तम भाव संबंधित सभी क्षेत्रों में पूर्ण प्रभाव डालती है।

  • विवाह के लिए सप्तम भाव मुख्य भाव है इसलिए जातक के विवाह और वैवाहिक जीवन में इसका मंगल दृष्टि द्वारा दशम, लग्न और द्वितीय भाव को प्रभावित करके जातक को आवेशी, क्रोधी और कामुक बनाता है।
  • जो उचित मिलान द्वारा परिहार न होने की स्थिति में जातक के वैवाहिक जीवन में विघ्न डालने और अलगाव करने में पूर्ण सक्षम होता है। यह योग जीवनसाथी की आयु को भी प्रभावित करता है। ऐसे जातक का अपने परिवार से विरोध बना रहता है और भार्या की अल्पायु उसके वैवाहिक जीवन में अधिक कष्ट लाती है।
  • सप्तम भावस्थ अशुभ मंगल जातक के विवाह संबंध में बाधा कारक होता है। यदि सप्तम भाव में मंगल अशुभ ग्रहों के साथ हो तो जातक का विवाह होने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। विवाह पश्चात भी वर वधू में अनबन बनी रहती है।

अष्टम भाव में मंगल

जन्मपत्रिका में अष्टम भाव, जातक की आयु का भाव और सप्तम से द्वितीय भाव होने से उसके जीवनसाथी का मारक भाव होता है। सप्तम विवाह का भाव है तो लग्न से द्वितीय भाव जातक के लिए मारक भाव के साथ-साथ सप्तम से अष्टम भाव होने के कारण विवाह की आयु का भाव होता है। जिसको अष्टमस्थ मंगल अपनी दृष्टि द्वारा प्रभावित करके इस स्थिति में भी जातक के विवाह और वैवाहिक जीवन को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है।

  • अष्टमस्थ मंगल वैवाहिक जीवन को पूर्ण रूप से प्रभावित कराता है। अष्टमस्थ मंगल अपनी दृष्टि द्वारा सप्तम से पंचम अर्थात लग्न से एकादश एवं सप्तम से नवम अर्थात् चतुर्थ भाव जो वैवाहिक जीवन के पूर्वपुण्य और इस जन्म के सौभाग्य के भाव है दोनों की नैसर्गिक श्रेष्ठता को कठोरता में बदल देता है।
  • साथ ही साथ सप्तम से पंचम अर्थात एकादश भाव को अपनी दृष्टि से प्रभावित करके जातक की आय प्राप्ति के मार्ग एवं वंश वृद्धि में रुकावट डालता है 
  • अपनी अष्टम दृष्टि से तीसरे भाव को प्रभावित करके वह जातक के भाई-बहनों के लिए असहनीय बनाता है। तीसरा भाव सूक्ष्म आयु स्थान भी होता है। अतः मंगल अपनी दृष्टि द्वारा जातक की आयु को भी प्रभावित करता है। इन विपरीत परिस्थितियों से जातक का वैवाहिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पढ़ने की संभावना होती है।
  • अष्टम भावस्थ अशुभ मंगल जातक के कुसंगति में पड़ने के योग बनाता है। यदि अष्टम भाव में अशुभ मंगल पर मारक ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को अथवा जीवन साथी को मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होता है।

द्वादश भाव में मंगल

  • द्वादश भाव व्यय भाव होने के साथ-साथ शयन सुख, अस्पताल, कारावास और मोक्ष अर्थात मृत्यु का भाव भी कहलाता है। साथ ही यह भाव सप्तम से षष्टम अर्थात वैवाहिक जीवन का शत्रु और रोग भाव भी है।
    यहां बैठा मंगल लग्न से तीसरा, छठा और सप्तम भाव को अपनी दृष्टि से प्रभावित करता है अर्थात जातक की आयु, शत्रु एवं रोग भाव और वैवाहिक जीवन के भाव को पुनः अपने प्रभाव में ले लेता है। जातक अतिव्ययी होने के कारण, रोग-शोक और शत्रुओं से घिरे रहने के कारण निराशा व अपमान से पीड़ित होता है।
  • क्रोध और आवेश के कारण जातक इन सबका प्रतिशोध अपने जीवनसाथी से लेता है। इससे उसके वैवाहिक जीवन पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ता है आपसी प्रेम समाप्त हो जाता है कई बार तो वैवाहिक जीवन मैं बिखरने और अलग होने की स्थिति आ जाती है
  • द्वादश भावस्थ अशुभ मंगल के कारण जातक के वैवाहिक जीवन में अत्यधिक खर्चो और हानि की स्थिति पैदा हो जाती है ऐसे जातक के विवाह पश्चात आय कम एवं खर्च अधिक हो जाने से पारिवारिक संतुलन बिगड़ जाता है और पति-पत्नी के प्रेम पूर्ण संबंध भी नहीं रह पाते।

मांगलिक योग का परिहार अथवा भंग होना

यह आवश्यक नहीं कि वर एवं कन्या दोनों को मंगली होना चाहिए। मंगल दोष का परिहार अनेक प्रकार से हो जाता है; स्वयं की पत्री में, अथवा जीवन साथी की पत्री के कारण।

  1. मेष राशि लग्न में, द्वादश में धनु राशि, चतुर्थ में वृश्चिक राशि, सप्तम में वृष राशि तथा अष्टम में कुंभ राशि में मंगल स्थित हो, तो मंगल दोष नहीं रहता है।
  2. चतुर्थ तथा सप्तम भाव में यदि मेष या कर्क का मंगल हो तो मंगल दोष विद्यमान नहीं रहता है।
  3. व्यय अर्थात द्वादश भाव में यदि मंगल बुध तथा शुक्र की राशि अर्थात मिथुन, कन्या तुला या वृष राशि में स्थित हो, तो मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है। 
  4. यदि गुरु बली होकर और शुक्र स्वराशि या उच्च का होकर लग्न या सप्तम भाव में स्थित हो, तो मंगल दोष नहीं रहता है।
  5. यदि मंगल वक्री,  नीच या अस्त का हो तो मंगल दोष नहीं रहता। 
  6. यदि मंगल स्वराशि अथवा उच्च हो तो मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है।
  7. यदि मंगल-गुरु का मंगल-राहु या मंगल-चंद्र एक राशि में स्थित हो, तो मांगलिक दोष भंग हो जाता है।
  8. केन्द्र और त्रिकोण में शुभ ग्रह तथा 3, 6, 11 में पाप ग्रह हों तथा सप्तमेश सप्तम में हो, तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है।
  9. सप्तमस्थ मंगल को यदि गुरु की दृष्टि हो तो मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है।
  10. यदि अधिक गुण मिलते हैं, तो मंगल दोष नहीं लगता है। 
  11. यदि किसी कुंडली में मंगल की स्थिति मांगलिक योग बना रही हो, उन्ही स्थानों पर दूसरे की कुंडली में प्रबल पाप ग्रह (राहु या शनि) स्थित हो, तो मांगलिक योग समाप्त हो जाता है।
  12. या कन्या की कुंडली में से एक मांगलिक हो और दूसरे की कुंडली में 3, 6, 11 वें भावों में राहु, मंगल या शनि हो तो मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है।
  13. शनि यदि एक की कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12 वें भावों में हो और दूसरे का मंगल इन्हीं भावों में हो, तो मंगल दोष नहीं लगता।

    उपर्युक्त योगों से यह साफ है कि एक कुंडली मंगली तो हो सकती है, लेकिन मंगली दोष हो, यह आवश्यक नहीं केवल पत्री में मंगली देख लेने मात्र से यह आवश्यक नहीं कि विवाह नहीं हो सकता।
    यह मानना कि मांगलिक दोष का असर 28 वर्ष बाद समाप्त हो जाता है, ठीक नहीं है मंगली दोष सर्वदा विद्यमान रहता है, लेकिन पूजा-पाठ द्वारा इसका प्रभाव कम किया जा सकता है। एक कुंडली का दूसरे के लिए मारक होना केवल मंगल पर ही आधारित नहीं होता। अन्य ग्रह, जैसे शनि राहु सूर्य भी ऐसी स्थितियां पैदा करने में सक्षम है।

विवाह प्रसंग में शनि मंगल से भी अधिक प्रभावशाली ग्रह है। यदि शनि लग्न, पंचम, सप्तम व दशम भाव में हो तो विवाह में बाधक बनता है। यदि शनि लग्नस्थ हो तो वैराग्य उत्पन्न करता है।
विवाह होने के पश्चात् पत्नी से बहुत अच्छा संबंध नहीं होता पंचम भावस्थ शनि वायु के पश्चात् वैवाहिक जीवन में बाधाएं उत्पन्न करता है। सप्तमस्थ शनि विवाह में देरी करवाता है और विवाह की बात बार-बार बनते-बनते रह जाती है। ऐसे शनि के साथ मंगल, सूर्य या चंद्रमा की युति अन्यथा दृष्टि संबंध होने से शनि का अशुभ प्रभाव और बढ़ जाता है।
दशमस्थ शनि भी विवाह में देरी करवाता है और विवाहोपरांत भी जीवन में कुछ न कुछ कड़वाहट उत्पन्न करता रहता है। यदि शनि नवांश कुंडली में नीच राशि का हो तो भी वैवाहिक जीवन में अस्थिरता की स्थिति बनी रहती है। वैवाहिक जीवन प्रेम में कमी तथा जीवन सुखमय नहीं होता। इस योग से प्रभावित व्यक्ति का विवाह देरी से होता है या विवाह होता ही नहीं है। विवाह होने के बाद भी वैवाहिक संबंध भंग होने की संभावनाएं बनी रहती हैं। सप्तम शनि का तो अवश्य ही निवारण कर लेना चाहिए, क्योंकि यह द्विभार्या या वैधव्य योग देता है। ज्योतिषी इस दोष को दूर करने के लिए ही घट विवाह या पीपल से विवाह करने का उपाय बताते हैं।

मंगल यंत्र

ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः

  • मंगल यंत्र के उपयोग से व्यापार, विदेश गमन, राजनीति, गृहस्थ जीवन, नौकरी पेशा आदि में सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है। मंगल दोष से युक्त जातक यदि नित्य प्रातः मूंगा माला के साथ इस यंत्र के सम्मुख दीप, धूप और फूल से पूजन करते हुए  कम से कम 11 माला जाप इस मंत्र की करता है तो निश्चित रूप से मांगलिक दोष में कमी होती है। इस उपाय को करने से वैवाहिक जीवन भी सुखमय बनता है।
  • इसके अतिरिक्त मंगल यंत्र के सम्मुख नित्य श्रीहनुमत पंचरत्नम्, हनुमान चालीसा, संकटमोचन हनुमाष्टक, बजरंग बाण, पावर्ती पंचकम् का पाठ करने से मंगल दोष का पूर्ण रूप से निराकरण होता है।
    पार्वती पंचकम् का पाठ विशेष रूप मांगलिक कन्याओं को करना चाहिए। साथ ही जब वाहन, मकान, नौकरों से कोई न कोई तकलीफ हो, व्यापार व्यवसाय में भयानक उतार-चढ़ाव आते हों।
  • यदि वर मांगलिक हो और कन्या मांगलिक नहीं हो तो वर का विवाह वास्तविक कन्या के साथ फेरे लेने से पूर्व तुलसी के पौधे के साथ करवाने चाहिए , जिससे वर के मांगलिक दोषों के प्रभाव तुलसी के पौधे में स्थानांतरित हो जाते हैं । एक अन्य विकल्प के रूप में खेजड़ी वृक्ष या शमी वृक्ष से भी लघु विवाह कराया जा सकता है। अन्य प्राचीन उपायों में कुंभ विवाह का भी प्रावधान है। जिसमें घट पूजन के बाद विवाह कराकर घट का विसर्जन कर देना चाहिए। मांगलिक वर या कन्या का विवाह 28 वर्ष की आयु के पश्चात किया जाना चाहिए, जिससे मंगल का दोष प्रभावहीन हो जाता है।
  • यदि जाने-अनजाने मंगल दोष रहते हुए विवाह हो भी जाए, तो दंपति को मंगल शांति करा लेनी चाहिए। प्रत्येक शादी की वर्षगांठ पर घर में मंगल यंत्र स्थापित करके मंगल शांति के 108 पाठ करने से वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है। 
  • यदि मंगल योगकारक हो, तो 8 रत्ती का मूंगा पहनकर मांगलिक दोष का निवारण किया जा सकता है। मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला तथा मांगलिक दोष का निवारण करने वाला है।
  • जिस कन्या की कुंडली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह कर ले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है। प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है।
  • मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मांगलिक दोष शांत होता है।
  • कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है। महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है। इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है। लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान्न एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल का दुष्प्रभाव दूर होता है।

 

विवाह में विलम्ब के उपाय

जिस कन्या के विवाह में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो वह निम्न कात्यायनी महामंत्र का नित्य एक माला का जाप करें।

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुतं देवि पतिं में कुरु ते नमः ।।

कन्या के विवाह में विलम्ब होने पर तथा मांगलिक दोष के निवारण हेतु प्रत्येक मंगलवार तथा शुक्रवार को माँ पार्वती जी की मांग में पांच बार सिन्दूर भरना चाहिए। जिस वर के विवाह में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो वह भगवती माँ के चित्र के समक्ष धूप दीप जलाकर निम्न मंत्र का नित्य एक माला का जाप करें। 

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
तारिणीं दुर्गसंसार सागरस्य कुलोद्भवाम् ।।

 

कन्या विवाह विलम्ब का उपाय

माँ गौरी की पूजा व मंत्र जाप
हे गौरी शंकरार्धांगी यथा त्वं शंकर प्रिया ।
तथा माम् कुरु कल्याणी कान्ता कान्तां सुदुर्लभाम ।।

इस मंत्र का उच्चारण व गायन भगवान शिव व माँ गौरी की मूर्ति या चित्र के सामने करें तो विशेष शुभ फल देने वाला है। मंगला गौरी व्रत, स्तोत्र पाठ, सौन्दर्यलहरी स्तोत्र पाठ, माँ गौरी व्रत, गौरी चालिसा, जानकीकृत पार्वती स्तोत्र, सौभाग्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र आदि का पाठ करना भी अत्यंत कल्याणकारी है

कन्या अपनी लंबाई से 7 गुणा कच्चे सूत का धागा लेकर उसे केसर या हल्दी से पीला करके भगवान शिव व माँ गौरी को (गठजोड़ ) लपेटे, गांठ न दें। विवाह विलंब वाले जातक की आयु के वर्ष की गिनती में रत्ती (लाल काली) लें, प्रत्येक रात्रि को अलग-अलग एक-एक करके हाथ में लेकर निम्न मंत्र पढ़ कर फूंक मार कर सबको एकत्र करके सुखे कुएं में 16 गुरुवार को डालें। विवाह शीघ्र होगा।

7 सुपारी, 7 हल्दी की गांठें 70 मि.ग्रा, अष्टगंध, 7 पीले फूल, 70 ग्राम चने की दाल, 70 से.मी. पीला कपड़ा, 7 गुड़ की डलियां छोटी-छोटी 7 पीतल के टुकड़े, 7 सिक्के (रु.) सब लड़की से लड़की की माँ पीले कपड़े में बंधवा कर माँ हाथ में लेकर माँ भगवती से लड़की की शादी के लिए प्रार्थना करे फिर उसे घर के किसी पवित्र स्थान में वीरवार के दिन स्थापित करें, 42वें दिन वीरवार को माँ भगवती के मंदिर में चढ़ाएं। शीघ्र विवाह होगा।

लड़के के विवाह विलम्ब उपाय

निम्न मंत्र का दुर्गा सप्तशती पाठ के साथ सम्पुट
पत्नी मनोरमा देही 
मनोवृत्तानुसारिणी ।तारणी दूर्ग संसार सागरस्य कुलोदभवाम।।

विवाह बाधक ग्रह का मंत्र जाप साबर (शाबर मंत्र)

ॐ गौरी आवे। शिव जो ब्यावे। अमुक (नाम) का विवाह तुरंत सिद्ध करे। देर न करे। जो देर होवे तो शिव का त्रिशूल पड़े। गोरख नाथ की दुहाई फिरे।

पत्नी प्राप्ति के लिए मंत्र

पत्नीं मनोरमा देही मनोवृत्तानुसारिणी। तारणी दूर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।
पति प्राप्त करने के लिए मंत्र
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।।
नन्द गोप संतु देव पति में कुरु ते नमः।।

मंगल दोष निवारण व्रत-पूजा पाठ

  • सोलह शुक्रवार व्रत:, कन्याओं को दूध या चावल की मिठाई देनी चाहिए। खटाई या खट्टी वस्तुएं भूल कर भी नहीं खाएं।
  • सोलह सोमवार व्रत : शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं। शिवजी की पूजा-अर्चना करें। तमिलनाडु के कुम्भाकोणम जिले में एक विशेष मंदिर में पूजा-अर्चना करने से विवाह शीघ्र होता है।
  • दान : विवाह में बाधा देने वाले ग्रहों का दान निरंतर रूप से करना कल्याणकारी होता है।
  • रत्न धारण  : विवाह कारक ग्रह शुक्र का रत्न ओपल धारण करने से शीघ्र फल प्राप्त होता है। योग कारक ग्रह का रत्न धारण करना भी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
  • यदि कोई लड़का अथवा लड़की मांगलिक है तब विवाह पूर्व उसका गुप्त विवाह पीपल, शालिग्राम अथवा कुंभ (घडा) से कर देना चाहिए। इससे मंगल का अशुभ प्रभाव इन चीजों पर टल सकता है।
  • मंगला गौरी व्रत और वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला है इसलिए इन व्रतों को रखने से भी मंगल दोष का प्रभाव कम होता है।
  • मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने तथा हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी मांगलिक दोष की शांति होती है। हनुमान जी की नियमित उपासना करने से मांगलिक दोष काफी हद तक कम हो जाता है और दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है इसलिए हनुमान जी की पूजा जीवन भर करनी चाहिए।
  • मंगल दोष के मामले में सबसे ज्यादा ध्यान व्यक्ति को अपने स्वभाव पर देना चाहिए। क्योंकि मंगल व्यक्ति का झगड़ालू और उत्तेजित बनाता है, शारीरिक संबंधों में भी उत्तेजना देता है इसलिए अपने स्वभाव में नरमी लाना बहुत जरूरी है। 

कुम्भ/ अर्क विवाह

  • मांगलिक दोषयुक्त कुंडली के मिलान में यदि योगों के द्वारा परिहार संभव न हो तो इसके कुछ उपाए है जिसके करने के बाद मंगल-दोष को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
  • जैसे कि कुम्भ-विवाह, विष्णु-विवाह और अश्वाथा- विवाह अर्थात अगर ऐसे जातकों के विवाह से पहले जिसमें किसी एक की कुंडली जो कि मांगलिक दोषयुक्त हो उसका विवाह इन पद्धतियों में से किसी एक से करके पुनः फिर उसका विवाह गैर मांगलिक दोषयुक्त कुंडली वाले के साथ किया जा सकता है।
  • कुम्भ-विवाह में वर या वधू की शादी एक घड़े के साथ कर दी जाती है और उसके पश्चात उस घड़े को तोड़ दिया जाता है। 
  • उसी प्रकार अश्वथा- विवाह में वर या की शादी एक केले के पेड़ के साथ कर दी जाती है। उसके पश्चात उस पेड़ को काट दिया जाता है। विष्णु-विवाह में वधू की शादी विष्णु जी की प्रतिमा से की जाती है। फिर उसका विवाह जिससे उसकी शादी तय हो उससे कर देनी चाहिए।

मंगल भात पूजन

  • अवंतिका उज्जैन में ग्रहराज मंगल का जन्म स्थान है। ग्रहों में मंगल को तीसरा स्थान प्राप्त है। जिन जातकों की कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश स्थानों पर यदि मंगल हो तो जातक की पत्रिका मांगलिक कहलाती है।
  • हर स्थान पर मंगल कभी भी अमंगल नहीं करते। उपरोक्त स्थानों पर ही कुछ समस्याएं समस्याएं आती हैं जैसे विवाह में देरी, कर्ज में वृद्धि, संतान प्राप्ति में रुकावट, राजनीतिक क्षेत्र में वर्चस्व में कमी, प्रशासनिक क्षेत्र में असफलता, भवन, भूमि, वाहन, धातु आदि के व्यवसाय में हानि इत्यादि कारणों से जातक हमेशा मानसिक व शारीरिक समस्याओं से ग्रसित रहता है।
  • इन सभी बाधाओं को दूर करने के लिये भगवान मंगल की विशेष आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने हेतु कुछ अनुष्ठान किये जाते हैं जो मंगल के मूल जन्म स्थान अवंतिका में खर्राता संगम अर्थात क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित स्वयंभू महामंगल श्री अंगारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर संपन्न होते हैं जिनमें मुख्य रूप से पंचामृत पूजा, गुलाल पूजा तथा भात पूजन, मंगल मंत्रों से जाप व हवन प्रमुख हैं।
  • यह पूजा पूरी श्रद्धा व विश्वास से करने पर जातक के क्रोध में कमी, मन में स्थिरता तथा मस्तिष्क में शीतलता प्राप्त होती है। पके हुए चावल में दही व पंचामृत मिला कर भगवान मंगल को अर्पित करने से उन्हें शीतलता प्राप्त होती है और जातक के अमंगल का हरण करते हैं।

 

मंगल दोष शांति के प्रमुख स्थल

 

1. मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश

  • मंगल ग्रह की पूजा के द्वारा मंगल देव प्रसन्न होते हैं तथा मंगल द्वारा जनित विनाशकारी प्रभाव भी शांत और नियंत्रित होते हैं। 
  • इसके साथ-साथ मंगल के सकारात्मक प्रभावों में वृद्धि भी होती है। पुराणों में उज्जैन नगरी को मंगल की जननी कहा गया है।
  • ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ करवाने आते हैं। पूरे भारत से लोग यहां पर आकर मंगल देव की पूजा आराधना करते हैं। वह मंगल शांति हेतु यहां भात पूजा करवाते हैं।

 

2. अंगारेश्वर महादेव मंदिर, उज्जैन (मध्यप्रदेश)

  • पुराणों में मंगल ग्रह का जन्म स्थान उज्जैन में माना गया है। इसलिए मंगल ग्रह की शांति के लिए यथासंभव अंगारेश्वर महादेव में विशेष पूजा फलदायी मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि इस पूजा से मंगल ग्रह दोष की शंति होती है और विवाह योग्य युवक-युवतियों के विवाह में मांगलिक दोषों के कारण आ रही समस्याएं हल हो जाती हैं।
  • अवंतिका के प्राचीन 84 महादेवों में से श्री अंगारेश्वर 43वें महादेव हैं जो कि वटवृक्ष के सामने क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है जिन्हें मंगलदेव भी कहा जाता है इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो व्यक्ति इस इस महालिंग श्री अंगारेश्वर का दर्शन करेगा उनका फिर जन्म नहीं होगा साथ ही जो इस लिंग का पूजन मंगलवार को करेगा वह इस युग में कृतार्थ हो जायेगा।
  • यहां मंगलवार को पड़ने वाली चतुर्थी के दिन अंगारेश्वर का दर्शन व्रत, पूजन करने पर मंगल दोष शांति होती है और संतान, धन, भूमि, सम्पत्ति व यश की प्राप्ति होती है। इनके दर्शन पूजन से वास्तु दोष व भूमि दोष का भी निवारण होता है।

 

मंगल दोष शांति के विभिन्न पाठ और महत्व


हनुमान चालिसा

ऐसा विश्वास है की भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ अमोघ व विलक्षण फल प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त यह कार्यों में आने वाली असफलता और रुकावट को दूर करके सफलता प्रदान करता है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को तनाव से मुक्ति मिलती है और मानसिक शांति और बल प्राप्त होता है । विभिन्न प्रकार के रोग,दोष और मनोबल में आने वाली कमी भी हनुमान चालीसा के पाठ से दूर होती है।

संकटकोचन हनुमाष्टक

यदि किसी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में कष्ट, मांगलिक दोष, दुर्भाग्य, भूत-प्रेत की बाधा, असाध्य रोग, शारीरिक और मानसिक कष्ट, कारोबार में रूकावट जैसी समस्याएँ हो तो उसे व्यक्ति के लिए प्रभु श्री राम के परम भक्त मंगल मूर्ति मारुति नंदन श्री हनुमान जी का पूर्ण श्रद्धा भाव से पूजन तथा संकट मोचन हनुमाष्टक का पाठ करना शुभ फलदायी माना गया है।

बजरंग बाण

मंगल ग्रह दोष से मिलने वाली रोग पीड़ा और बाधा दूर करने के लिए बजरंग बाण का पाठ बहुत ही प्रभावकारी माना जाता है। इसका पाठ सर्व बाधा का नाश करने वाला भी है। बजरंग बाण के नियमित पाठ से हनुमान जी प्रसन्न होकर मंगल ग्रह की शांति करते है और वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है।

श्री हनुमत पंचरत्नम

यदि प्रति मंगलवार हनुमानजी का पूजन किया जाए या श्रीहनुमत पंचरत्नम का पाठ करना, मंगलदेव के दोषों की समाप्ति करता है। साथ ही हनुमानजी के पूजन से मंगल के साथ ही शनि दोषों का भी निवारण हो जाता है।

पार्वती पंचकम

शीघ्र विवाह कामना, वैवाहिक जीवन में सुख प्राप्ति, मांगलिक दोष के शमन और वधव्य योग से पीडित महिलाओं को पार्वती पंचकम का नित्य प्रातः पाठ करना चाहिए। ऐसा करना इन महिलाओं के लिए अत्यंत कल्याणकारी सिद्ध होगा।